Wednesday, September 14, 2016

काली मिर्च, इलायची, राई, कर्पूर, हींग, फिटकरी के टोटके

काली मिर्च
(1) ज्योतिष के अनुसार काली मिर्च को शनि ग्रह की कारक वस्तु माना गया है। शनि की साढ़े साती या ढैय्या की स्थिति में काले कपड़े में थोड़ी सी काली मिर्च और कुछ पैसे दान करना चाहिए। इससे शनि का प्रकोप तुरंत ही शांत होगा।

(2) अगर आप किसी भी तरह से शनि दोष से पीड़ित है तो भोजन करते समय कभी भी उपर से नमक या मिर्च नहीं लें वरन काला नमक और काली मिर्च का ही प्रयोग करें। इससे शनि का बुरा असर खत्म होगा।

(3) अगर आपका काम बार-बार बिगड़ रहा हो तो इसके लिए भी एक बहुत ही आसान सा टोटका है। घर से बाहर निकलते समय मेन गेट पर काली मिर्च रखें और जाते समय इस पर पैर रख कर निकलें, आपका हर कार्य पूरा होगा। परन्तु ध्यान रखें कि काली मिर्च पर पैर रखने के बाद वापिस घर में नहीं आना है अन्यथा इसका उल्टा असर भी हो सकता है।

(4) अगर आप काफी सारा धन कमाना चाहते हैं परन्तु परिस्थितियों तथा भाग्य के चलते नहीं कमा पा रहे हैं तो यह उपाय आपके लिए सबसे ज्यादा फायदेमंद है। आपको सिर्फ इतना सा करना है कि शुक्ल पक्ष (चांदनी पक्ष) में काली मिर्च के पांच दाने लेकर अपने सिर पर से 7 बार उसार लें। इसके बाद किसी सुनसान चौराहे पर जाकर चारों दिशाओं में एक-एक दाना फेंक दे तथा पांचवे बचे काली मिर्च के दाने को आसमान की तरफ फेंक दें और बिना पीछे देखे या किसी से बात घर वापिस आ जाए। आपको जल्दी ही पैसा मिलेगा।

(5) काली मिर्च के 7-8 दाने लेकर उसे घर के किसी कोने में दिए में रखकर जला दें। घर की समस्त नकारात्मक ऊर्जा समाप्त हो जाएगी।

(6) 5 ग्राम हींग, 5 ग्राम कपूर तथा 5 ग्राम काली मिर्च को मिलाकर पाउडर बना लें और फिर उस चूर्ण की राई के दाने बराबर गोलियां बना लें। अब इन गोलियों को दो बराबर हिस्सों में बांद दें। एक हिस्से को सुबह और दूसरे हिस्से को शाम के समय घर में जलाएं। इस तरह लगातार तीन दिनों तक करने में घर को लगी बुरी नजर उतर जाती है और घर में किसी तरह की कोई बुरी शक्ति होती है तो वह भी चली जाती है।

इलायची
(1)  कार्य की सफलता हेतु : किसी महत्वपूर्ण कार्य से बाहर जा रहे हैं तो प्रात:काल तीन इलायची दाएं हाथ की मुट्ठी में रखें और श्रीं श्रीं बोलें और फिर उसे खालें। खाने के बाद बाहर जाएं।

(2) विवाह में देरी हो रही है तो आप शुक्ल पक्ष के पहले गुरुवार को मंदिर में दो हरी इलायची के साथ 5 अलग-अलग तरह की मिठाइयों के साथ दीपक और जल अर्पित करें। अगर स्त्री के विवाह में विलम्ब है तो गुरुवार को और अगर किसी पुरुष के विवाह में देरी हो रही है तो शुक्रवार को यह उपाय कर सकता है।

(3) पति का आकर्षण आपके प्रति कम हो गया है तो शुक्रवार के दिन तीन इलायची लेकर अपने शरीर से स्पर्श कराएं और उसे अपने पल्लू या रुमाल से बंधकर रख लें। अगले दिन सुबह उसे पीसकर किसी खाने की वस्तु में मिलकर अपने पति को खाने के लिए दे दें। ऐसा कम से कम तीन शुक्रवार करें, जल्द ही लाभ मिलेगा।

(4) गरीबी से मुक्ति पाना चाहते हैं तो किसी गरीब व्यक्ति, भिखारी या किसी हिजड़े को एक सिक्का दें और साथ में उसे खाने के लिए इलायची दें। ऐसा आप मौका मिलने पर हमेशा करें। जल्द ही आपकी गरीबी दूर हो जाएगी।

(5) जरूरी काम से बाहर जाने से पहले तीन इलायची लेकर उसे अपने दाएं हाथ की मुट्ठी में बांधकर श्रीं श्रीं बोलें। इसके उपरांत उस इलायची को खा लें। आपके सभी कार्य सफल हो जायेंगे। इसके अलावा आप अपने पर्स में 5 छोटी इलायची भी रख सकते हैं

(5) काफी मेहनत के बावजूद भी आपकी सैलरी नहीं बढ़ रही है तो आप हर रात सोने से पहले एक हरे कपड़े में एक इलायची बांधकर अपने तकिये के नीचे रख दें। सुबह उठकर उसे बाहर के किसी व्यक्ति को खाने के लिए दें।

(5) शुक्र का उपाय : यदि आपका शुक्र कमजोर है या खराब असर दे रहा है, तो एक लौटा जल लेकर 2 बड़ी इलायची डालकर पानी के आधा होने तक उबालें। फिर इस पानी को अपने नहाने वाले पानी में मिला कर स्नान करें। स्नान करते वक्त पवित्रता का ध्यान रखें। वाहन से जुडे मामलों में भी यह उपाय लाभकारी है।
नहाते समय शुक्र के निम्न श्लोक का पाठ करें
ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली ! दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा !!

राई

(1) दुर्भाग्य दूर करने हेतु : एक पानी भरे घड़े में राई के पत्ते डालकर इस जल को अभिमंत्रित करके जिस

भी किसी व्यक्ति को स्नान कराया जाएगा उसकी दरिद्रता रोग नष्ट हो जाते हैं।

(2) नजर उतारना : बुरी नजर उतारने के लिए राई के सात दाने, नमक की सात छोटी-छोटी डली, सात
साबुत लाल मिर्च को लेकर नजर से पीड़ित बच्चे के सिर के उपर से सात बार उतारकर जलती आग में दाल दें।
ध्यान रहे ये क्रिया करते समय किसी की भी टोक नहीं होनी चाहिए। समस्त कार्य बाएं हाथ से करना चाहिए। आग के लिए लकड़ी देसी आम की होनी चाहिए। 
मिर्च, राई व नमक को पीड़ित व्यक्ति के सिर से वार कर आग में जला दें। चंद्रमा जब राहु से पीड़ित होता है तब नजर लगती है। मिर्च मंगल का, राई शनि का और नमक राहु का प्रतीक है। इन तीनों को आग (मंगल का प्रतीक) में डालने से नजर दोष दूर हो जाता है। यदि इन तीनों को जलाने पर तीखी गंध न आए तो नजर दोष समझना चाहिए। यदि आए तो अन्य उपाय करने चाहिए।

(3) चिड़चिढ़ापन दूर करें : यदि व्यक्ति चिड़चिढ़ा हो रहा है तथा बात बात पर गुस्सा हो रहा है तो उसके ऊपर से राई मिर्ची उसार कर जला दें। तथा पीड़ित व्यक्ति को उसे देखते रहने के लिए कहें।

(4) राई दान : गुरुवार को राई का दान करने से पूरा दिन शुभ रहता है। इसके अलावा नमक, राई, राल, लहसुन, प्याज के सूखे छिलके व सूखी मिर्च अंगारे पर डालकर उस आग को रोगी के ऊपर सात बार घुमाने से बुरी नजर का दोष मिटता है। 

कर्पूर
(1) पुण्य प्राप्ति हेतु : कर्पूर जलाने की परंपरा प्राचीन समय से चली आ रही है। शास्त्रों के अनुसार देवी-देवताओं के समक्ष कर्पूर जलाने से अक्षय पुण्य प्राप्त होता है। अत: प्रतिदिन सुबह और शाम घर में संध्यावंदन के समय कर्पूर (कपूर) जरूर जलाएं।

(2) पितृदोष और कालसर्पदोष से मुक्ति हेतु : कर्पूर जलाने से देवदोष व पितृदोष का शमन होता है। प्रतिदिन सुबह, शाम और रात्रि को तीन बार घी में भिगोया हुआ कर्पूर जलाएं। घर के

शौचालय और बाथरूप में कर्पूर की 2-2 टिकियां रख दें। बस इतना उपाय ही काफी है।

(3) आकस्मिक घटना या दुर्घटना से बचाव :  इसके लिए रात्रि में हनुमान चालीसा का पाठ करने के बाद कर्पूर जलाएं। हालांकि प्रतिदिन सुबह और शाम जिस घर में कर्पूर जलता रहता है उस घर में किसी भी प्रकार की आकस्मिक घटना और दुर्घटना नहीं होती। रात्रि में सोने से पूर्व कर्पूर जलाकर सोना तो और भी लाभदायक है।

(4) सकारात्मक उर्जा और शां‍ति के लिए : घर में यदि सकारात्मक उर्जा और शांति का निर्माण करना है तो प्रतिदिन सुबह और शाम कर्पूर को घी में भिगोकर जलाएं और संपूर्ण घर में उसकी खुशबू फैलाएं। ऐसा करने से घर की नकारात्मक उर्जा नष्ट हो जाएगी। दु:स्वप्न नहीं आएंगे और घर में अमन शांति बनी रहेगी है।

(5) अचानक धन प्राप्ति का उपाय : गुलाब के फूल में कपूर का टुकड़ा रखें। शाम के समय फूल में एक कपूर जला दें और फूल को देवी दुर्गा को चढ़ा दें। इससे आपको अचानक धन मिल सकता है। यह कार्य आप कभी भी शुरू करके कम से कम 43 दिन तक करेंगे तो लाभ मिलेगा। यह कार्य नवरात्रि के दौरान करेंगे तो और भी ज्यादा असरकारक होगा।

(6) भाग्य चमकाने के लिए : पानी में कर्पूर के तेल की कुछ बूंदों को डालकर नहाएं। यह आपको तरोताजा तो रखेगा ही आपके भाग्य को भी चमकाएगा। यदि इस में कुछ बूंदें चमेली के तेल की भी डाल लेंगे तो इससे राहु, केतु और शनि का दोष नहीं रहेगा, लेकिन ऐसे सिर्फ शनिवार को ही करें।

(7) पति-पत्नी के बीच तनाव को दूर करने हेतु : रात को सोते समय पत्नी अपने पति के तकिये में सिंदूर की एक पुड़िया और पति अपनी पत्नी के तकिये में कपूर की 2 टिकियां रख दें। प्रातः होते ही सिंदूर की पुड़िया घर से बाहर कही उचित स्थान पर फेंक दें तथा कपूर को निकाल कर शयन कक्ष में जला दें।
यदि ऐसा नहीं करना चाहते हैं तो प्रतिदिन शयनकक्ष में कर्पूर जलाएं और कर्पूर की 2 टिकियां शयनकक्ष के किसी कोने में रख दें। जब वह टिकियां गलकर समाप्त हो जाए तो दूसरी रख दें।

(8) धनवान बनने के लिए : रात्रि काल के समय रसोई समेटने के बाद चांदी की कटोरी में लौंग तथा कपूर जला दिया करें। यह कार्य नित्य प्रतिदिन करेंगे तो धन-धान्य से आपका घर भरा रहेगा। धन की कभी कमी नहीं होगी।

(9) विवाह हेतु : विवाह में आ रही बाधा को दूर करना चाहते हैं तो यह उपाय बहुत ही कारगर है। 36 लौंग और 6 कपूर के टुकड़े लें, इसमें हल्दी और चावल मिलाकर इससे मां दुर्गा को आहुति दें

हींग
(1) घर की नकारात्म ऊर्जा : 5 ग्राम हींग, 5 ग्राम कपूर तथा 5 ग्राम काली मिर्च को मिलाकर पाउडर बना लें और फिर उस चूर्ण की राई के दाने बराबर गोलियां बना लें। अब इन गोलियों को दो बराबर हिस्सों में बांद दें। एक हिस्से को सुबह और दूसरे हिस्से को शाम के समय घर में जलाएं। इस तरह लगातार तीन दिनों तक करने में घर को लगी बुरी नजर उतर जाती है और घर में किसी तरह की कोई बुरी शक्ति होती है तो वह भी चली जाती है।

(2) वृश्चिक राशि के लिए कर्ज से मुक्ति का टोटका : हींग के पानी से स्नान करें या एक डली हींग को पानी में डालकर उसे गला लें और फिर उस पानी से स्नान करने से कर्ज मुक्ति के रास्ते खुल जाएंगे। इसके अलावा आप लाल मसुर की दाल का दान भी कर सकते हैं।

(3) तांत्रिक दुष्प्रभाव से बचने के लिए : हींग के पानी से कुल्ला करना चाहिए। खासकर यह उपाय आप होली के दिन करेंगे तो बहुत असरकारक होगा।

फिटकरी
(1) बुरे सपनों से मिलेगी मुक्ति : आप सोने वाले बिस्तर के नीचे काले कपड़े में फिटकरी बांधकर रखें। इससे बुरे स्वप्न आना, नींद में चमकना या किसी अनजान भय से व्यक्ति ‍मुक्त हो जाता है।
किसी भी मंगलवार या रविवार के दिन फिटकरी का एक टुकड़ा बच्चे के सिरहाने रख दें। रात में बच्चे को सोते समय बुरे स्वप्न नहीं आएंगे और न ही बच्चा चमकेगा या चिखेंगा।

(2) बरकत के लिए : किसी दुकान या प्रतिष्ठान के मुख्य द्वार पर काले कपड़े में फिटकरी बांधकर लटका देने से बरकत बरकरार रहती है।

(3) नकारात्मक ऊर्जा: बाथरूम में खड़े नमक या फिटकरी से भरा एक कटोरा रखें। हर महीने इस कटोरे के नमक या फिटकरी को बदलती रहें। माना जाता है कि हवा में मौजूद नमी के साथ-साथ यह नमक आसपास की नकारात्मक ऊर्जाओं को भी अपने अंदर समाहित कर लेता है।(4) वास्तुदोष मुक्ति : आपके मकान में कमरे की खिड़की, दरवाजा या बॉलकनी ऐसी दिशा में खुले, जिस ओर कोई खंडहरनुमा मकान स्थित हो। या वहां कोई उजाड़ जमीन या प्लाट पड़ा हो या फिर बरसों से बंद पड़ा मकान हो, श्मशान या कब्रिस्तान स्थित हो, तो यह अत्यंत अशुभ है।
ऐसे मकान में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह सुनिश्चित करने के लिए किसी शीशे की प्लेट में कुछ छोटे-छोटे फिटकरी के टुकड़े आदि खिड़की या दरवाजे या बालकनी के पास रख दें तथा उन्हें हर महीने नियम से बदलते रहें, तो वास्तुदोष से मुक्ति मिलती है।
इसके अलावा 50 ग्राम फिटकरी का टुकड़ा घर के प्रत्येक कमरे में तथा कार्यालय के किसी कोने में रख देने से वहां का वास्तु दोष कुछ हद तक कम हो जाता है।


(5) ऋण मुक्ति हेतु : एक पान के पत्ते पर थोड़ी सी फिटकरी और सिंदूर बांधकर बुधवार की सुबह या शाम को पीपल के पेड़ के नीचे किसी बड़े पत्थर से दबा दें। यह कार्य तीन बुधवार करेंगे तो लाभ मिलेगा।

(6) फिटकरी से नजर दोष मुक्ति : जिस व्यक्ति को नज़र लगी हो उसे लिटाकर, फिटकरी का टुकड़ा लेकर सिर से पांव तक सात बार उतारें। ध्यान रहे कि हर बार सिर से पांव तक ले जाकर टुकड़े को तलुवे से लगाकर फिर सिर से घुमाना शुरु करें। इस फिटकरी के टुकड़े को आग में डाल दें। जैसे- जैसे वह फिटकरी आग में जलेगी, वैसे- वैसे बुरी नजर का असर खत्म होता जाएगा।

(7) धन प्राप्ति के लिए : रोज रात को सोते समय अपने दांत फिटकरी से साफ करेंगे तो लाभ होगा। इसके अलावा आप कभी कभार फिटकरी के पानी से स्नान भी करें।

(8) कारोबार में कामयाबी : पांच टुकड़े फिटकरी, 6 नीले फूल और एक कमर में बांधने वाला बेल्ट नवमी के दिन देवी को चढ़ा दें। दसमी के दिन वेल्य को किसी कन्य को दे दें, नीले फूल बहते पानी में डालें और फिटकरी के टुकड़े को संभालकर रख लें।

(9) साक्षात्कार में कामयाबी : साक्षात्कार देने जाते समय ये टुकड़े अपने पास रखेंगे तो सफलता मिलेगी। दूसरा यह कि कारोबार से जुड़े किसी महत्वपूर्ण कार्य से जा रहे हैं तो ये फिटकरी के टुकड़े अपने पास रखेंगे तो अवश्य सफलता मिलेगी।

(10) दुर्घटना से बचने के लिए : गुरुपुष्य नक्षत्र में शुभ मुहूर्त में निकाली गई अपामार्ग (लटजीरा, आंधाझाड़ा) नामक पौधे की जड़ ले लें। इस जड़ को एक फिटकरी के टुकडे एवं एक कोयले के टुकडे के साथ एक काले वस्त्र में बांधकर उससे वाहन के चारों ओर दाहिने घूमते हुए 7 चक्कर लगाएं। यह एक प्रकार का उसारा करने के समान है। इसके पश्चात इस पोटली को वाहन में कहीं रख दें। ऐसा करने से वाहन दुरात्माओं से रक्षित रहता है तथा उसकी दुर्घटनाओं से भी रक्षा होती है।

Tuesday, September 13, 2016

अष्टविनायक मंदिर

अष्टविनायक यात्रा में आठ गणेश मंदिरों की तीर्थयात्रा को महाराष्ट्र में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है । तीर्थ गणेश के ये आठ पवित्र मंदिर स्वयं उत्पन्न और जागृत हैं । धार्मिक नियमों से तीर्थयात्रा शुरू की जानी चाहिए । यात्रा निकट मोरगांव से शुरू कर और वहीं समाप्त होनी चाहिएपूरी यात्रा 654 किलोमीटर की होती है । पुराणों व धर्म ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि भगवान ब्रहमदेव ने भविष्यवाणी की थी कि हर युग में श्री गणेश विभिन्न रूप मंे अवतरित होंगें । कृतयुग में विनायक, त्रेतायुग में मयूरेश्वर, द्वापरयुग में गजानन एवं धूम्रकेतु नाम से कलयुग के अवतार लेंगे । भगवान गणेश के आठों शक्तिपीठ महाराष्ट्र में ही हैं । दैत्य प्रवृतियों के उन्मूलन हेतु ये ईश्वरीय अवतार हैं । मंदिरों के पौराणिक महत्व और इतिहास बताता है कि यहां विराजित गणेश प्रतिमाएं स्वयंभू मानी जाती हैं अर्थात यह मूर्तियां स्वयं प्रकट हुई हैं और इनका स्वरूप प्राकृतिक माना गया है । अष्ट विनायक की यात्रा से आध्यात्मिक सुख, आनंद की प्राति होती हैं । अष्टविनायक दर्शन की शास्त्रोक्त क्रमबद्धता इस प्रकार है ।
1.         श्री मयूरेश्वर मंदिर
2.         श्री सिद्धिविनायक (सिद्धटेक)
3.         श्री बल्लालेश्वर मंदिर
4.         श्री वरदविनायक मंदिर
5.         श्री चिंतामणी गणेश मंदिर
6.         श्री गिरिजात्मज अष्टविनायक
7.         श्री विघनेश्वर अष्टविनायक
8.         श्री महागणपति मंदिर

इन आठ पवित्र तीर्थ में 6 पुणे में हैं और 2 रायगढ़ जिले में है । जो भगवान गणेश को समर्पित कर रहे हैं जो अष्टविनायक मंदिरों की यात्रा करनी चाहिए । सबसे पहले मोरेगांव के मोरेश्वर की यात्रा करनी चाहिए और उसके बाद क्रम में सिद्धटेक, पाली, महाड, थियूर, लेनानडरी, ओजर, रन्जनगांव और उसके बाद फिर से मोरेगांव अष्टविनायक मंदिर यात्रा समाप्त करनी चाहिए
1.श्री मयूरेश्वर मंदिर - ज्ञान का हाथी , मंदिर पुणे से 80 किलोमीटर दूर स्थित है । मोरगांव गणेश मंदिर की पूजा का सबसे महत्वपूर्ण केन्द्र है । पौराणिक कथा के अनुसार भगवान गणेश ने दानव सिंधु से लोगों का बचाव किया था । मोरया गोसावी ने इस मंदिर के संरक्षण हैं आज मोरया गोसावी जो कि पेशवा शासकों के परिवार से है इसे व्यवस्थित कर रहे हैं । मोरेगांव मंदिर आठ श्रद्धेय मंदिरों की तीर्थ यात्रा का शुरूआती बिन्दु है तथा साथ ही तीर्थयात्री तीर्थयात्रा के अंत में मोरगांव मंदिर की यात्रा नहीं करता है तो तीर्थ अधूरा माना जाता है । मयूरेश्वर मंदिर में मुस्लिम वास्तुकला का प्रभाव दिखता है क्योंकि इसके निर्माण और संरक्षक के रूप में एक मुस्लिम मुखिसा उस समय था । मंदिर के चारों कोने मीनारों के के साथ एक लंबे पत्थर चारदिवारी से घिरे हैं । मंदिर के चार द्वार चार युगों की याद दिलाते हैं । 1. पूर्वी द्वार पर राम और सीता की छवि जो कि धर्म, कर्तव्य के प्रतीक के रूप में, 2. दक्षिणी द्वार पर शिव और पार्वती जो कि धन और प्रसिद्धि के प्रतीक के रूप में 3. पश्चिमी गेट पर कामदेव और रति जो कि इच्छा, प्रयार और कामुक खुशी के प्रतीक के रूप में और 4. उत्तरी द्वार पर वराह और देवी माही जो कि मोक्ष और शनि ब्रहम का प्रतीत मानी जाती हैं । 

मंदिर के द्वार पर एक बहुत बड़ी नंदी बैल की मूर्ति स्.थापित है जिसका मुंह भगवान की मूर्ति की तरफ है । यह नंदी भगवान शिव मंदिर ले जाया जा रहा था विश्राम के लिए उसे गणेश मंदिर पर रखा गया तो बाद में उसने वहां से जाने से मना कर दिया तब से आज नंदी और मूसा दोनों गणेश मंदिर के मुख्य द्वार के सरंक्षक माने जाते हैं । इस मंदिर में गणपति जी बैठी मुद्रा में विराजमान है तथा उनकी टंक बाई ओर की तरफ तथा चार भुजाएं एवं तीन नेत्र स्पष्ट प्रदर्शित हैं । गणेश मूर्ति के सामने गणेश के वराह मूसा एवं मोर हैं तथा गर्भगृह के बाहर नगना, भैरव हैं । मंदिर के विधानसभा भवन में गणेश के विभिन्न रूपों का चित्रण 23 विभिन्न मूर्तियों स्.थापित हैं । दिन में तीन बार सुबह 7 बजे, दोपहर 12 बजे और रात्रि 8 बजे पूजा की जाती है 

मयूरेश्वर दूर से एक छोटे किले की तरह दिखता है । मयूरेश्वर की मूर्ति के पास केवल मुख्य पुजारी को प्रवेश की अनुमति है । जिसमें गर्भगृह, गर्भगृह में है देवता विराजमान तीन आंखों , और अपने टंªक बांई ओर कर दिया है । आंखें और देवता की नाभि कीमती हीरों से जड़ी हुई है । सिर पर नागराज की नुकीले देखी जा सकती हैं । गणेश मूर्ति सिद्धि और बुद्धि की पीतल की मूर्तियों से घिरे हुए है । मूर्ति पर 100-150 साल तक सतत अभिषेक एवं सिंदूर  से वास्तवित मूर्ति से यह बहुत बड़ी दिखने लगी है । मुख्य द्वार गर्भगृह में देवता का सामना एक कछुआ और एक नंदी से होता है । हिन्दू मिथक के अनुसार मयूरेश्वर के मंदिर में भगवान गणेश द्वारा सिंधुरासुर नामक एक राक्षस की हत्या से संबंधित है । सभी देवताओं को सिंधु के कहर से बचाने के लिए भगवान गणेश से प्रार्थना की और भगवान गणेश मोर पर सवार होकर युद्ध में राक्षस सिंधु का नाश किया और बाद में मोर को भाई स्कंद को भेंट कर दिया ।











2. सिद्धिविनायक गणपति - अष्ट विनायक मंदिर तीर्थयात्रा के दौरान यह दूसरा गणेश मंदिर है जो भीम नदी के तट पर स्थित है । यह पुणे से 200 किलोमीटर दूर सिद्धटेक के गावं में स्थित हैसिद्धिटेक पर्वत पर भगवान विष्णु ने सिद्धि हासिल की थी इसलिए यहां भगवान गणेश की ऐसी मूर्ति सिद्धविनायक के रूप में कहा जाता है । पुणें में सबसे पुराने मंदिरों में से एक है । यह मंदिर 200 से अधिक साल पुराना है । मूल मंदिर श्रीमंत नानासाहेब  द्वारा 1753 में पेशवा राजवंश ने निर्माण किया गया था । पुणे में और आसपास श्रद्धालुओं के लिए यह एक जबरदस्त आस्था और भक्ति है । यह गणपति आपके सभी इच्छाओं को पूरा करने के लिए जाना जाता है और के रूप में जाना जाता है । सिद्धिटेक में सिद्धिविनायक अष्टविनायक मंदिर एक बहुत शक्तिशाली देवता माना जाता है यह वह जगह है जहां भगवान विष्णु ने सिद्धी हासिल की थी । सिद्धटेक में सिद्धि विनायक की मूर्ति स्वयंभू यानि स्वयं अवतीर्ण और पीतल फ्रेम में है । हम सिद्धि विनायक के दोनों किनारों पर जय और विजय की पीतल की मूर्तियां देख सकते हैं । मंदिर के गर्भगृह में देवी शिवाय का छोटा सा मंदिर है । सिद्धिविनायक मंदिर पहाड़ी की चोटी पर बना है जिसका मुख्य द्वार उत्तर दिशा की ओर है । मंदिर का हाॅल जो कि 15 फुट ऊंचा और 10 फुट चैड़ा है जिसे महारानी अहिल्याबाई होलकर ने बनवाया था । सिद्धिविनायक मंदिर की परिक्रमा के लिए पहाड़ी की गोल यात्रा करनी पड़ती है जिसमें लगभग 30 मिनट लग जाते हैं । इस मंदिर में गणेश की मूर्ति 3 फीट ऊंची और ढाई फीट चैड़ी और जो कि उत्तर दिशा की ओर मुख किए हैं । भगवान गणेश की टंªक सीधे हाथ की तरफ है और इस गणेश की गतिशील रूप माना जाता है ।










3.श्री बल्लालेश्वर मंदिर अपने भक्त का नाम और जो एक ब्राहम्ण की तरह कपड़े पहने है । यह मंदिर गोवा राजमार्ग पर नागोथाने से पहले से 11 किलोमीटर, मुंबई पुणे हाइवे बांद, पाली से टोयन में स्थित है । एक लड़का बल्लाल भगवान गणेश का प्रबल भक्त था । एक दिन उसने अपने पाली गांव में एक विशेष पूजा का आयोजन किया जिसमें भाग लेने के लिए गांव के सभी बच्चों को आमंत्रित किया और पूजा कई दिनों तक चली , समपिर्त बच्चों बल्लाल की पूजा के पूरा होने से पहले घर लौटने से इन्कार कर दिया । इससे बच्चों के माता पिता नाराज होकर बल्लाल के पिता कल्याणी सेठ से शिकायत की तो उन्होंने जगंल जाकर जहां यह पूरा चल रही थी भगवान गणेश की मूर्ति को एवं बल्लाल को पीटा एवं गंभीर हालत में जंगल में फेंक दिया । 
पर भक्त बल्लाल गणेश जप करता रहा तब गणपति ने दर्शन दिये तो बालक बल्लाल ने इसी गांव में निवास का आग्रह किया तब भगवान गणेश ने अपनी सहमति दी और कहा कि यह स्थान एवं मंदिर बल्लाल के नाम से ही जाना जाएगा । बल्लालेश्वर पाली पहुंचने के लिए जो कि रायगढ़, तालुका सुधागढ़ में स्थित है । पाली कर्जत से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर है । यह स्थान खोपोली पूणे से 80 किलोमीटर की दूरी पर है । भगवान गणेश एक बहुत लोकप्रिय देवता हैं । भगवानों में सबसे पहला और सबसे महत्वपूर्ण अधिकार भगवान गणपति की पूजा का है । गणपति सभी बाधाओं और दर्द को दूर कर भक्त की इच्छाओं की पूर्ति कर खुशी प्रदान करते हैं । गणपति को बुद्धि और कला का भगवान माना जाता है ।









4.श्री वरदविनायक  ’- देवताओं में प्रथम पूजनीय भगवान श्री गणेश का ही एक रूप हैं । मंदिर महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के कोल्हापुर तालुका में एक सुन्दर पर्वतीय गाँव महाड में स्थित है । इस मंदिर की मान्यता है कि यहां वरदविनायक गणेश अपने नाम के समान ही सारी कामनाओं को पूरा होने का वरदान देते हैं । प्राचीन काल मंे यह स्थान ‘‘ भद्रक ’’ नाम से भी जाना जाता था । इस मंदिर में नंददीप नाम से एक दीपक निरंतर प्रज्जवलित है, यक सन् 1892 से लगातार प्रदीप्यमान है । कथा - पुष्पक वन में गृत्समद षि के तप से प्रसन्न होकर भगवान गणपति ने उन्हें ‘‘ गणनां त्वां ’’ मंत्र के रचयिता की पदवी यहीं पर दी थी और ईश देवता बना दिया । उन्हीं वरदविनायक गणपति का यह स्थान है । वरदविनायक गणेश का नाम लेने मात्र से ही सारी कामनाओं को पूरा होने का वरदान प्राप्त होता है । वरदविनायक चतुर्थी का साल भर नियमानुसार व्रत करने से सम्पूर्ण मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है । प्रति माह कि शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मध्याहन के समय वरदविनायक चतुर्थी या वैनाय की चतुर्थी का व्रत किया जाता है । वैनाय की चतुर्थी में गणेशजी की षोडशोपचार विधि से पूजा-अर्चना करने का विधान है । पूजन में गणेशजी के विग्रह को दूर्वा, गुड़ या मोदक का भोग , सिंदूर या लाल चंदन चढ़ाना चाहिए एवं गणेश मंत्र का 108 बार जाप करें









5. चिंतामणि गणपति (थेयूर) - यह मंदिर हवेली तालुका जो पुणे जिले में पवित्र स्थान जो कि तीन नदियों के संगम,  भीम ,मुला और मुथा पर स्थित है । यह पांचवा अष्टविनायक मंदिर है । अगर आप खुशिओं की तलाश में हैं और आपका मन विचलित रहता हो और चिंताएं आपको घेरे रहती हों तो आप थेयूर आएं और श्री चिंतामणि गणपति की पूजा करें सभी चिंताओं से मुक्ति मिल जाएगी । भगवान ब्रहमा ने अपने विचलित मन को वश में करने के लिए यहां पर तपस्या की थी
कथा - राजा अभिजीत और रानी गुनावती ने पुत्र प्राप्ति के लिए ऋषि वैशम्पायन की सलाह पर कई वर्षो तक तप किया उन्हें एक बेटा जिसका नाम गणराजा रखा गया, जो बहुत बहादुर पर गुस्सेवाला था एक शिकार अभियान में उसे ऋषि कपिला के आश्रम में रूकना पड़ा । बाबा कपिला ने गणराजा का स्वागत किया साथ ही पूरी सेना को दोपहर के भोजन के लिए आमंत्रित किया । भगवान इंद्र ने ऋषि कपिला को चिंतामणि दी थी जिससे जो मांगों वह बात पूरी होती थी । चिंतामणि की शक्ति को देख लालची गणराजा ने ऋषि कपिला से उसे देने को कहा पर उन्होंने मना कर दिया तब गणराजा ने बलपूर्वक उनसे चिंतामणि छीन ली । बाबा कपिला निराश होकर देवी दुर्गा की सलाह से भगवान गणेश की पूजा करने लगे तब गणेश ने प्रसन्न होकर गणराजा से युद्ध कर चिंतामणि वापस ले ली और राजा अभिजीत को दी, पर जब उन्होंने चिंतामणि बाबा कपिला को लौटाना चाही तो उन्होंने उसे लेने से इंकार कर दिया । भगवान गणेश और गणराजा के बीच युद्ध एक कंदब के पेड़ के पास हुई तभी से इस गावं का नाम कदंब तीर्थ पड़ गया । मंदिर - मंदिर का मुख्य द्वार उत्तर दिशा की ओर है । मंदिर का हाॅल लकड़ी से बना है और हाॅल में काले पत्थर से बना एक छोटा सा फुब्बारा है । मंदिर की एक बड़ी घंटी मुख्य मंदिर के बाहर से देखी जा सकती है ।





6. श्री गिरजात्मज गणपति मंदिर - गिरितात्म अष्ट विनायक मंदिर तीर्थ यात्रा पर दौरा किया छठे भगवान गणेश मंदिर है । यह एक पहाड़ पर है और बौद्ध गुफाओं के स्थान पर बनाया गया है । एक मात्र मंदिर है इधर भगवान गणेश गिरिजात्माजा के रूप में पूजा जाता है । लेनयादरी पहाड़ पर 18 बौद्ध गुफाओं में से 8वीं गुफा में गिरजात्मज विनायक मंदिर है । इन गुफाओं को गणेश गुफा कहा जाता है । मंदिर तक पहुंचने के लिए 307 सिढ़ियों चढ़नी पड़ती हैं । पूरा मंदिर ही एक बड़े पत्थर को काट कर बनाया गया है । 


मंदिर का मुख्य द्वार दक्षिण की ओर है । मुख्य मंदिर के सामने एक विशाल सभामंडप जो 53 फीट और 51 फीट का है जिसमें कोई भी स्तंभ नहीं है । इस हाॅल में 18 छोटे छोटे अपार्टमंेट हैं और श्री गिरिजात्मक विनायक की मूर्ति मध्य के अपार्टमेंट में स्थापित  किया गया है । भगवान गणेश की छवि उसके सिर बाईं और कर दिया साथ, एक चट्टान में नक्काशीदार बाहर एक फ्रेस्को है ।  मुख्य मंदिर की ऊंचाई केवल 7 फीट है जिसमें 6 स्तंभ है जिनमें गाय, हाथी आदि की आकृति उकेरी गई है । 

मुख्य मंदिर से एक नदी बहती है जिसके किनारे पर जूनार शहर बसा है । मंदिर में कोई बिजली का कनेक्शन नहीं है । मंदिर का निर्माण इस तरह किया गया है कि मंदिर में दिन भर सूर्य की किरणों से प्रकाश रहता है । यह जगह गणेश पुराण में  जिरनापुर या लेखन पर्वत गणेश पुराण के रूप में जाना जाता है । गिरिजात्मज विनायक मंदिर सहित सभी 30 लेनयादरी गुफाएं भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के नियंत्रण में हैं । गिरिजात्मज विनायक पार्वती के पुत्र के रूप में गणेश को दर्शाता है । यह मंदिर पुणे नासिक राजमार्ग पर पुणे से करीब 90 किलोमीटर दूर है जो नारायणगांव से 12 किलोमीटर की दूरी पर है । यहां मूर्ति एक अलग मूर्ति नहीं है । लेकिन मूर्ति का केवल एक ही आंख से देखा जा सकता है जिसमें से गुफा का एक पत्थर की दीवार पर उकेरी गई है । गिरजात्मज सचमुच गणेश गिरिजा (देवी पार्वती) के बेटे का मतलब है ।








7.विघनेश्वर गणपति मंदिर (ओजर) - ज्ञान का हाथी , जिसे 1785 में बनाया गया था और 1967 में श्री आपाशास्त्री जोशी द्वारा फिर बनाया गया ।  ओजर पुणे जिले में जूनर तालुका में है यह पुणे नासिक रोड पर नारायणगावं से जूनर या ओजर होकर 85 किलोमीटर की दूरी पर है । ओजर अष्टविनायक सातवें मंदिर के लिए निर्धारित है । मंदिर विघनेश्वर कुकदेश्वर नदी के तट पर ओजर में है । कथा के अनुसार हेमावती के राजा अभिनन्दना ने एक महान बलिदान प्रदर्शन इंद्र की गददी पाने के लिए किया तो इंद्र ने विघनसुर को बाधा डालने के लिए बुलाया जिसने संतों और दूसरो लोगों को भी परेशान करने लगा तब लोगों के गणपति से अनुरोध किया गणपति ने विघनासुर को परासत किया और विघनासुर गणपति के चरणों में गिर कर आग्रह करने लगा कि उनके साथ उसका नाम लोगों ने लेना चाहिए । विनायक ने उसके अनुरोध को स्वीकार कर उस स्थान को विधनेश्वर या विघनराज के रूप में कहा जाने लगा ।

पौराणिक कथा के अनुसार विघनासुर नामक दानव संतों को बहुत परेशान कर रहा था गणपति से अनुरोध करने पर उन्होंने उसे रोका तो दानव ने अपने नाम के साथ गणपति को स्वीकार करने का आग्रह किया इसलिए यह मंदिर विघनेश्वर, विघनहर्ता, और विधनहार के रूप में जाना जाता है । यह मंदिर सबसे खूबसूरत मंदिरों में से एक है । मुख्य द्वार के दोनों तरफ दो गार्ड दिखते हैं, एक भव्य प्रवेश द्वार के बाहर एक विशाल आंगन निहित है । मंदिर नाजुक चित्रों ओर नक्काशिंयों से सजा है । भगवान की मूर्ति के बाईं ओर टंªक जबकि चेहरा पूर्व की ओर है, मूर्ति की आंखें कीमती रत्नों से बनी हैं उनके माथे और नाभि को हीरे और अन्य रत्नों से सजाया गया है । मूर्ति के दोनों तरफ रिद्धी और सिद्धी की पीतल की मूर्तियां हैं । मंदिर का मुख्य द्वार पूर्व दिशा को तथा सुरक्षात्मक दृष्टि से सभी चारों पक्षों पर मजबूत किलेबंदी की है मंदिर को बड़े बड़े पत्थरों की दीवार से चारों ओर से घिरा है तथा प्रवेश द्वार पर दो दीप मालाएं (तेल के लैंप के लिए पत्थरों के खम्भों पर) और दो विशाल द्वार पलकस यानि गार्ड दिखते हैं । मुख्य मंदिर दो हाॅल दुंदीराज की मूर्ति के साथ और अन्य सफेद संगमरमर से बना जिसमें पंचयातन यानि सूर्य, शिव, विष्णु, देवी, और गणपति) की मूतियों एवं मंदिर के स्वर्ण गुंबद और शिखर हैं । 

विघनेश्वर मंदिर 1833 में बनाया गया था और अपनी अनूठी विशेषता चिमाजी अप्पा, बाजीराव पेशवा के छोटे भाई द्वारा दान धन के साथ बनाया गया जिसमें कहा जाता है कि एक शानदार सुनहरा स्र्वण गुंबद है । मुख्य द्वार सभामण्डप के प्रवेश द्वार पर  मूसे की एक मूर्ति है । इस मंदिर में गणपति मूर्ति विघनेश्वरा सभी बाधाओं को दूर करने के लिए अवतार लिया है । इस मंदिर के देवता की पूजा से लोगों की सभी समस्याओं का हल उन्हें मिल जाता है । मंदिर विघनेश्वर अपनी शानदार भिति और मूर्तिकला काम के लिए जाना जाता है । भव्य प्रवेश द्वार, एक बड़ा आगन और ध्यान के डिजाइन किए हुए छोटे कमरे हैं । ओजर कुकादी नदी के तट पर है और नदी पर बना येदागांव बांध के पास है ।
8. महागणपति (रांजणगाँव) - मंदिर इतिहास के अनुसार 9वीं और 10वीं सदी के बीच बना था । माधवराव पेशवा भगवान गणेश की मूर्ति रखने के लिए मंदिर के तहखाने में एक कमरा बनाया है बाद में इंन्दौर के सरदार किबे पर यह पुर्निर्मित नगरखाना प्रवेश द्वार के ऊपर स्थित है , मुख्य मंदिर पेशवा की अवधि से मंदिर की तरफ दिखता है । मंदिर का प्रवेश द्वार पूर्व दिशा की ओर है और एक विशाल सुन्दर प्रवेश द्वार बना है । भगवान गणपति की मूर्ति को  ‘‘ माहोतक’’ नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इसके 10 टंªक (सूंड़) और 20 हाथ हैं । 
यह मूल मूर्ति को मंदिर के एक तहखाने में छिपाया हुआ है क्योंकि मुस्लिम आक्रमण के भय से । यह मंदिर पुणे से रंजनगाँव में पुणे अहमदनगर राजमार्ग पर 50 किलोमीटर की दूरी पर है । यह स्थान दानव त्रिपुरासुर के किलों को नष्ट करने में शिव की मदद के लिए आए थे । सूर्य की किरणें सूर्य उगते ही सीधी मूर्ति पर आती हैं । श्री अष्टविनायक गणपतियों में महा गणपति भगवान गणेश का सबसे शक्तिशाली प्रतिनिधित्व है । शिव दानव त्रिपुरासुर को परास्त किया था इसलिए इन्हें त्रिपुरारी  महा गणपति के रूप में भी  जाना जाता है । यहां इन्हें आठ, दस या बारह हथियारों के साथ होने वाले रूप में दिखाया गया है ।

घर के लिए शुभ वृक्ष


हिन्दू धर्म में तुलसी के पौधे को एक तरह से लक्ष्मी का रूप माना गया है। कहते है की जिस घर में तुलसी की पूजा अर्चना होती है उस घर पर भगवान श्री विष्णु की सदैव कृपा दृष्टि बनी रहती है । आपके घर में यदि किसी भी तरह की निगेटिव एनर्जी मौजूद है तो यह पौधा उसे नष्ट करने की ताकत रखता है। हां, ध्यान रखें कि तुलसी का पौधा घर के दक्षिणी भाग में नहीं लगाना चाहिए, क्योंकि यह आपको फायदे के बदले काफी नुकसान पहुंचा सकता है। तुलसी को घर में ईशान या पूर्व दिशा में लगाना चाहिए । हर मनुष्य को रविवार को छोड़कर नित्य प्रात: स्नान के पश्चात तुलसी पर जल चढ़ाना चाहिए । कहते है जो मनुष्य प्रति बृहस्पतिवार को प्रात: तुलसी के पौधे को कच्चे दूध से सींचता है और रविवार को छोड़कर संध्या के समय तुलसी के समीप शुद्द घी का दीपक जलाता है उसके यहाँ माँ लक्ष्मी सदैव निवास करती है ।


भगवान शिव को बेल का वृक्ष अत्यंत प्रिय है। मान्यता है इस वृक्ष पर स्वयं भगवान शिव निवास करते हैं। भगवान शिवजी का परम प्रिय बेल का वृक्ष जिस घर में होता है वहां धन संपदा की देवी लक्ष्मी पीढ़ियों तक वास करती हैं। इसको घर में लगाने से धन संपदा की देवी लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और सारे संकट भी दूर होते है । बेल वृक्ष को सींचने से पितर तृप्त होते है। माना जाता कि बेल वृक्ष और सफ़ेद आक् को जोड़े से लगाने पर उस घर में माँ लक्ष्मी की स्थाई रूप से कृपा प्राप्त होती है। बेल के वृक्ष का सुबह शाम अवश्य ही दर्शन करना चाहिए इससे जाने अनजाने में हुए पापो का नाश होता है।
बेल के वृक्ष को लगाने से वंश वृद्धि होती है परन्तु इसे नष्ट करने से मनुष्य घोर पाप का भागी बनता है ।
शमी का पौधा घर में होना भी बहुत शुभ माना जाता है । शमी के पौधे के बारे में तमाम भ्रांतियां मौजूद हैं और लोग आम तौर पर इस पौधे को लगाने से डरते-बचते हैं। ज्योतिष में इसका संबंध शनि से माना जाता है और शनि की कृपा पाने के लिए इस पौधे को लगाकर इसकी पूजा-उपसना की जाती है। इसका पौधा घर के मुख्य द्वार के बाईं ओर लगाना शुभ है। शमी वृक्ष के नीचे नियमित रूप से सरसों के तेल का दीपक जलाएं, इससे शनि का प्रकोप और पीड़ा कम होगी और आपका स्वास्थ्य बेहतर बना रहेगा। विजयादशमी के दिन शमी की विशेष पूजा-आराधना करने से व्यक्ति को कभी भी धन-धान्य का अभाव नहीं होता। शमी का पौधा घर में बाहर की तरफ ऐसे स्थान पर लगाएं जिससे यह घर से निकलते समय दाहिनी ओर पड़े ।
शमी का फूल - पवित्र, शुभ एवं पुण्य प्रदायक
स्वर्ण वृक्ष शमी 

अश्वगंधा का पौधा को भी बहुत ही शुभ माना जाता है । इसे घर में लगाने से समस्त वास्तु दोष समाप्त हो जाते हैं । अश्वगंधा का पौधा जीवन में शुभता को बढ़ाकर जीवन को और भी अधिक सक्रिय बनाता है। यह एक अत्यन्त लोकप्रिय आयुर्वेदिक औषधि है।
यदि घर में आंवले का पेड़ लगा हो और वह भी उत्तर दिशा और पूरब दिशा में तो यह अत्यंत लाभदायक है। यह आपके कष्टों का निवारण करता है। आंवले के पौधे की पूजा करने से सभी मनौतियाँ पूरी होती हैं। इसकी नित्य पूजा-अर्चना करने से भी समस्त पापों का शमन हो जाता है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आंवले के वृक्ष में सभी देवताओं का निवास होता है तथा यह फल भगवान विष्णु को भी अति प्रिय है। शास्त्रों के अनुसार कार्तिक मास में तो स्वयं भगवान विष्णु आँवले की जड़ में निवास करते है ।

संस्कृत में आँवले को अमरफल भी कहते है । मान्यता है कि जिस घर में उत्तर दिशा में आँवले का पौधा लगा होता है उस घर में भगवान श्री हरि की कृपा से धन-धान्य, सुख समृद्धि की कोई भी कमी नहीं रहती है । शास्त्रों के अनुसार यदि कोई व्यक्ति एक आँवले का पौधा लगाकर उसकी देखभाल करता है तो उसे राजसूय यज्ञ का फल मिलता है । 
हिन्दू धर्म में अशोक के वृक्ष को बहुत ही शुभ और लाभकारी माना गया है। अशोक का शब्दिक अर्थ है- शोक का न होना। अशोक अपने नाम के अनुसार ही शोक को दूर करने वाला और प्रसन्नता देने वाला वृक्ष है। इससे घर में रहने वालों के बीच आपसी प्रेम और सौहार्द बढ़ता है।सभी मांगलिक एवं धार्मिक कार्यों में अशोक के पत्तों का प्रयोग होता है। मान्यता है कि अशोक वृक्ष घर में लगाने से या इसकी जड़ को शुभ मुहूर्त में धारण करने से मनुष्य को सभी शोकों से मुक्ति मिल जाती है। घर में अशोक के वृक्ष होने से घर में सुख शांति एवं धन समृद्धि का वास होता है एवं उस घर में किसी की भी अकाल मृत्यु नहीं होती। अशोक का वृक्ष दो तरह का होता है- एक असली अशोक वृक्ष और दूसरा नकली अशोक वृक्ष। असली अशोक का वृक्ष आम के पेड़ जैसा छायादार वृक्ष होता है। इसके पत्ते 8-9 इंच लंबे और दो-ढाई इंच चौड़े होते हैं। इसके पत्ते शुरू में तांबे के रंग के जैसे होते हैं । अशोक के वृक्ष में वसंत ऋतु में नारंगी रंग के फूल आते हैं, जो बाद में लाल रंग के होजाते हैं। इन सुनहरे लाल रंग के फूलों के कारण इसे 'हेमपुष्पा' भी कहा जाता है। जबकि नकली अशोक वृक्ष देवदार के पेड़ की तरह लंबा वृक्ष होता है। इसके पत्ते भी आम के पत्तों जैसे ही होते हैं। और इस अशोक में सफेद और पीले फूल तथा लाल रंग के फल होते हैं।
श्वेतार्क गणपति का पौधा दूधवाला होता है। वास्तु सिद्धांत के अनुसार दूध से युक्त पौधों का घर की सीमा में होना अषुभ होता है। किंतु श्वेतार्क या आर्क इसका अपवाद है। श्वेतार्क के पौधे की हल्दी, अक्षत और जल से सेवा करें। ऐसा करने से इस पौधे की बरकत से उस घर के रहने वालों को सुख शांति प्राप्त होती है। ऐसी भी मान्यता है कि जिसके घर के समीप श्वेतार्क का पौधा फलता-फूलता है वहां सदैव बरकत बनी रहती है। उस भूमि में गुप्त धन होता है या गृह स्वामी को आकस्मिक धन की प्राप्ति होती है ।
गुडहल का पौधा ज्योतिष में सूर्य और मंगल से संबंध रखता है, गुडहल का पौधा घर में कहीं भी लगा सकते हैं, परंतु ध्यान रखें कि उसको पर्याप्त धूप मिलना जरूरी है। गुडहल का फूल जल में डालकर सूर्य को अघ्र्य देना आंखों, हड्डियों की समस्या और नाम एवं यश प्राप्ति में लाभकारी होता है। मंगल ग्रह की समस्या, संपत्ति की बाधा या कानून संबंधी समस्या हो, तो हनुमान जी को नित्य प्रात: गुडहल का फूल अर्पित करना चाहिए। माँ दुर्गा को नित्य गुडहल अर्पण करने वाले के जीवन से सारे संकट दूर रहते है ।
नारियल का पेड़ भी शुभ माना गया है । कहते हैं, जिनके घर में नारियल के पेड़ लगे हों, उनके मान-सम्मान में खूब वृद्धि होती है।
घर के वायव्य कोण में नीम केे वृक्ष का होना अति शुभ होता है। सामान्तया लोग घर में नीम का पेड़ लगाना पसंद नहीं करते, लेकिन घर में इस पेड़ का लगा होना काफी शुभ माना जाता है। पॉजिटिव एनर्जी के साथ यह पेड़ कई प्रकार से कल्याणकारी होता है। शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति नीम के सात पेड़ लगाता है उसे मृत्योपरांत शिवलोक की प्राप्ति होती है। जो व्यक्ति नीम के तीन पेड़ लगाता है वह सैकड़ों वर्षों तक सूर्य लोक में सुखों का भोग करता है।
केले का पौधा धार्मिक कारणों से भी काफी महत्वपूर्ण माना गया है। गुरुवार को इसकी पूजा की जाती है और अक्सर पूजा-पाठ के समय केले के पत्ते का ही इस्तेमाल किया जाता है। इसे भवन के ईशान कोण में लगाना चाहिए, क्योंकि यह बृहस्पति ग्रह का प्रतिनिधि वृक्ष है।इसे ईशान कोण में लगाने से घर में धन बढ़ता है। केले के समीप यदि तुलसी का पेड़ भी लगा लें तो अधिक शुभकारी रहेगा। इससे विष्णु और लक्ष्मी की कृपा साथ-साथ बनी रहती है। कहते हैं इस पेड़ की छांव तले यदि आप बैठकर पढ़ाई करते हैं तो वह जल्दी जल्दी याद भी होता चला जाता है।
बांस का पौधा घर में लगाना अच्छा माना जाता है। यह समृद्धि और आपकी सफलता को ऊपर ले जाने की क्षमता रखता है। अगर आपकी तमाम कोशिशो के बाद भी आपको अपने कार्यक्षेत्र में मनचाही सफलता नहीं मिल रही है तो आपको अपने भवन / कार्यालय में बांस का पौधा लगाना चाहिए। फेंगशुई में बांस के पौधे को बहुत महत्व दिया गया है। बांस संसार का अकेला ऐसा पौधा है जो हर वातावरण में हर मुश्किलों के बाद भी तेजी से बढ़ता है। इसी लिए इसे उन्नति, दीर्घ आयु और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।

भारतीय वास्तु शास्त्र में भी बांस को बहुत शुभ माना गया है। मान्यता है कि जहां बांस का पौधा होता है वहाँ से बुरी आत्माएं दूर ही रहती हैं। भगवान श्री कृष्ण भी हमेशा अपने पास बांस की बनी हुई बांसुरी रखते थे। सभी शुभ अवसरों जैसे मुण्डन, जनेऊ और शादी आदि में बांस का अवश्य ही उपयोग किया जाता है । बांस का पौधा घर के मुखिया के लिए बहुत ही शुभ माना जाता है। जिस घर में यह लगा होता है उस घर के निवासियों को थोड़े से ही परिश्रम से अपने कार्यों में सफलता प्राप्त हो जाती है । उस घर में स्वत: ही धन, यश और समृद्धि का आगमन होता है। यह पौधा सुख समृद्धि, अच्छे भाग्य और अच्छे स्वास्थ्य का प्रतीक है। आजकल बाजार में शीशे के जार में बहुत से फेंगशुई के बाँस के पौधे मिल जायेंगे जिसे आप आसानी से लाकर अपने घर में लगा सकते है ।बाँस के इस पौधे को पूर्व दिशा में रखना चाहिए ।


ऐसी मान्यता है कि घर में मनीप्लांट लगाने पर सुख-समृद्धि का वास होता है। इसी के चलते लोग अपने घरों में यह पौधा जरूर लगाते हैं। मनीप्लांट का पौधा घर में कहीं भी आसानी से लग जाता है और इसका बहुत रखरखाव भी नहीं करना पड़ता है । लेकिन वास्तु शास्त्र के अनुसार अगर यह पौधा घर में सही दिशा में नहीं लगा हो तो आर्थिक नुकसान भी हो सकता है। वास्तु शास्त्रियों के अनुसार घर में मनीप्लांट के पौधे को लगाने के लिए आग्नेय दिशा सबसे उचित दिशा है। आग्नेय दिशा में यह पौधा लगाने से सर्वाधिक लाभ मिलता है। क्योंकि इस दिशा के देवता गणेशजी और प्रतिनिधि शुक्र हैं। भगवान गणेशजी विघ्न दूर करते हैं जबकि शुक्र देव धन,सुख-समृद्धि के प्रतीक है। लेकिन मनीप्लांट को कभी भी उत्तर-पूर्व दिशा अर्थात ईशान कोण में नहीं लगाना चाहिए। यह दिशा इमनीप्लांट के लिए बहुत ख़राब मानी गई है, ईशान दिशा का प्रतिनिधि देवगुरु बृहस्पति माना गया है और शुक्र तथा बृहस्पति में शत्रुवत संबंध है। इसलिए शुक्र से संबंधित मनीप्लांट को ईशान दिशा में लगाने से नुकसान ही होता है।
सामान्यता दूध या फल देने वाले पेड़ घर पर नहीं लगाने चाहिए, लेकिन नारंगी और अनार अपवाद है । यह दोनों ही पेड़ शुभ माने गए है और यह सुख एवं समृद्धि के कारक भी माने गए है । धन, सुख समृद्धि और घर में वंश वृद्धि की कामना रखने वाले घर के आग्नेय कोण (पूरब दक्षिण) में अनार का पेड़ जरूर लगाएं। यह अति शुभ परिणाम देता है।वैसे अनार का पौधा घर के सामने लगाना सर्वोत्तम माना गया है । घर के बीचोबीच पौधा न लगाएं। अनार के फूल को शहद में डुबाकर नित्यप्रति या फिर हर सोमवार भगवान शिव को अगर अर्पित किया जाए, तो भारी से भारी कष्ट भी दूर हो जाते हैं और व्यक्ति तमाम समस्याओं से मुक्त हो जाता है।

यह अवश्य ही ध्यान दे कि जो व्यक्ति अपने घर से पूर्व, उत्तर, पश्चिम अथवा ईशान दिशा में बाग बगीचा बनाता है वह धनि, यशस्वी, दानी, मृदुभाषी और धार्मिक प्रवर्ति का होता है लेकिन जो व्यक्ति आग्नेय, दक्षिण, नैत्रत्य अथवा वायव्य दिशा में वाटिका बनाता है उसे धन और संतान की हानि होती है , वह स्वयं भी अल्प आयु और रोगी होता है। वह पाप कर्म में लिप्त होता है और उसे इस लोक और परलोक में अपयश का सामना करना पड़ता है अत: घर में वाटिका किस ओर हो इसका निश्चय ही ज्ञान रखना चाहिए ।

सिद्धि देने वाली जड़ी-बूटी : गुलतुरा (दिव्यता के लिए), तापसद्रुम (भूतादि ग्रह निवारक), शल (दरिद्रता नाशक), भोजपत्र (ग्रह बाधाएं निवारक), विष्णुकांता (शस्त्रु नाशक), मंगल्य (तांत्रिक क्रिया नाशक), गुल्बास (दिव्यता प्रदानकर्ता), जिवक (ऐश्वर्यदायिनी), गोरोचन (वशीकरण), गुग्गल (चामंडु सिद्धि), अगस्त (पितृदोष नाशक), अपमार्ग (बाजीकरण)। बांदा (चुम्बकीय शक्ति प्रदाता), श्‍वेत और काली गुंजा (भूत पिशाच नाशक), उटकटारी (राजयोग दाता), मयूर शिका (दुष्टात्मा नाशक) और काली हल्दी (तांत्रिक प्रयोग हेतु) आदि ऐसी अनेक जड़ी-बूटियां हैं, जो व्यक्ति के सांसारिक और आध्यात्मिक जीवन को साधने में महत्वपूर्ण मानी गई हैं।

आइये जानते है कुछ विशेष कामना सिद्धि हेतु कौन से वृक्ष लगाये- (1) लक्ष्मी प्राप्ति के लिए- तुलसी, आँवला, केल, बिल्वपत्र का वृक्ष लगाये। (2) आरोग्य प्राप्ति के लिए- ब्राह्मी, पलाश, अर्जुन, आँवला, सूरजमुखी, तुलसी लगाये। (3) सौभाग्य प्राप्ति हेतु- अशोक, अर्जुन, नारियल, बड़ (वट) का वृक्ष लगाये। (4) संतान प्राप्ति हेतु- पीपल, नीम, बिल्व, नागकेशर, गुड़हल, अश्वगन्धा को लगाये। (5) मेधा वृद्धि प्राप्ति हेतु- आँकड़ा, शंखपुष्पी, पलाश, ब्राह्मी, तुलसी लगाये। (6) सुख प्राप्ति के लिए- नीम, कदम्ब, धनी छायादार वृक्ष लगाये। (7) आनन्द प्राप्ति के लिए- हरसिंगार (पारिजात) रातरानी, मोगरा, गुलाब लगाये।

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बीज-वृक्ष : लोक अनुष्ठानों में

आइये जानते है कुछ विशेष कामना सिद्धि हेतु कौन से वृक्ष लगाये- 
(1) लक्ष्मी प्राप्ति के लिए- तुलसी, आँवला, केल, बिल्वपत्र का वृक्ष लगाये। 
(2) आरोग्य प्राप्ति के लिए- ब्राह्मी, पलाश, अर्जुन, आँवला, सूरजमुखी, तुलसी लगाये। 
(3) सौभाग्य प्राप्ति हेतु- अशोक, अर्जुन, नारियल, बड़ (वट) का वृक्ष लगाये।
(4) संतान प्राप्ति हेतु- पीपल, नीम, बिल्व, नागकेशर, गुड़हल, अश्वगन्धा को लगाये।
(5) मेधा वृद्धि प्राप्ति हेतु- आँकड़ा, शंखपुष्पी, पलाश, ब्राह्मी, तुलसी लगाये। 
(6) सुख प्राप्ति के लिए- नीम, कदम्ब, धनी छायादार वृक्ष लगाये। 
(7) आनन्द प्राप्ति के लिए- हरसिंगार (पारिजात) रातरानी, मोगरा, गुलाब लगाये।